कभी तुम..............
अपने उलझे हुए व्यक्तित्व को, सुलझा के तो देखो।
रोते हुए बच्चे को , हँसा के तो देखो॥
राजनीति के छित्त्न्कसी से हटकर, देश सेवा में आ के तो देखो।
लम्बे सफ़र में किसी बुजुर्ग के लिए, सिट छोड़कर के तो देखो॥
अपने जिगरी दुश्मन को, जिगरी दोस्त बना के तो देखो।
पड़ोस के ख़ुशी में, खुश हो के तो देखो॥
प्रकृति के नयाब चीजों को, सजा के तो देखो।
छोटे- छोटे बच्चों के साथ, खेलकर तो देखो॥
अपने सेवक के कंधे पर, हाँथ रखकर तो देखो।
गिरते हुयें व्यक्ति को, सम्भाल के तो देखो॥
Wednesday, May 20, 2009
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वाह संजय भाई...वाह...एक बात तो साफ़ हो गयी की आप में लिखने की क्षमता तो है...अब बात रह गयी ले सुर ताल की तो उसे जानने समझने के लिए बहुत वक्त पढ़ा है...धीरे धीरे वो भी आ जायेगा...आप लिखना जारी रखिये क्यूँ की जितना लिखोगे उतना लेखन में निखार आएगा...कभी कभी आप अपने विषय याने डेबिट क्रेडिट पर भी लेख लिख सकते हैं...जरूरी नहीं है की हमेशा कविता ही लिखें...कुछ भी लिखें लेकिन लिखना बंद न करें...
ReplyDeleteआपको साहित्य की राह पर चलते देखना अपने आप में बहुत ख़ुशी का विषय है...चलते रहो..
जोदी तोरे डाक सुने क्यु ना आशे...तो एकला चालो रे...
नीरज
bahut achhi rachna k liye aapko badhai neerajji,
ReplyDeletewish you all the best
mai Neeraj ji ki baat se sahmat hoon.Aapke liye meri hardik shubhkamnayen.
ReplyDeleteDr.Bhoopendra
नीरज भाई ने पूरी बात कह दी.
ReplyDeleteभाव बहुत उम्दा हैं किन्तु!!
vaah badhiya blog hai.. :)
ReplyDeletebahut sundar sir ji ;
ReplyDeletebahut der se aapki dusari post bhi padh raha hoon .. kamaal likhte hai ..
is kavita ko padhkar dil ek alag se ahsaas me chala gaya .. behatreen lekhan . yun hi likhte rahe ...
badhai ...
dhanywad.
vijay
pls read my new poem :
http://poemsofvijay.blogspot.com/2009/05/blog-post_18.html