Thursday, May 28, 2009

हर दिन ट्रेन के वह १०० मिनट


हर दिन ट्रेन के वह १०० मिनट. मैं कोई ट्रेन की सबारी या फिर उस से जुडी किसी घटना को तरफ अपने इस पहली लेखनी को इंगित नहीं कर रहा हूँ बल्कि यह बतना चाह रहा हूँ कि यह हर दिन के वह १०० मिनट पूर्ण रूप से पूरी एक जिंदगी का निचोड़ हैं, और हर ब्यक्ति जो हर रोज अपने कर्म क्षेत्र के लिए इसका या इस तरह के किसी वाहन का प्रयोग करता हैं , रोज मात्र १०० मिनट में पूरी एक जिंदगी जी लेता हैं - चलिए अब हम इसका भावः बिस्तार किये देतें हैं-
हम हर रोज एक शिशु की भांति अनेक तरह की हिदायतों जो की अपने प्रिय जनो जो अक्सर आपकी पत्नी, माँ, पत्ति होते हैं उनसे लेकर एक स्कूल जाने बाले शिशु के भाती अनभुजे, भारी मन से अपने दफ्तर या फिर कर्म क्षेत्र के तरफ निकलते हैं जहाँ, पर अनेक हिदायतें के साथ कुछ डिमांड भी होतें हैं जिसे आपको जरूर से पूरा करना होता हैं, ठीक वैसे ही जैसे एक शिशु को सब कुछ अच्छा करने की हिदायत अपने माँ या फिर अपने गार्डियन से मिलता हैं और साथ में हमें मिलता हैं कलेवे की एक पोटली ठीक एक शिशु के भाती - साथ में फिर वही हिदायत ठीक टाइम पर इसे खा लेने का अन्यथा आपकी खैर नहीं। हम शिशु की तरह घर से निकल कर बाहर निकलते हीं एक व्यस्क के अबस्था को धारण कर लेतें हैं- जो की अपनी जिम्मेदारियों के बोझ से दबा हुआ परंतु बहुते समझदार - और ट्रेन पर आते हीं हमारी मुलाकात होती हैं बहूत सारे समझदार व्यस्क से और आरंभ होती हैं जीबन की अफरा तफरी, सर्वैवल फॉर एक्जिसटेंस , हर कोई मानो जीतना चाहता हो, सिट की लड़ाई , मात्र खड्डे होने की लड़ाई , धक्का देने की लड़ाई आदि आदि - और यदि हम इस में जीत गए तो क्या कहने - लगता हैं मानो एक ज़ंग जीत गए हों - और आप मुकद्दर के बादशाह हो. हर वह ट्रेन यात्री दुसरे यात्री के साथ एक कोम्पिटीटर का हीं बर्ताब करता हैं या फिर यूं कहिये करना पड़ता हैं क्योंकि यदि आपने थोडी छुट दी तो आपका पत्ता साफ. ठीक जिंदगी के नाक - आउट प्रतियोगिता के समान, जिसमे केवल आपको जितना ही होता है.

सिट पर बैठा हुआ व्यक्ति सिट पर इस तरह से चिपका होता जैसे मानो कोई नेता अपनी कुर्सी से या फिर जैसे कोई इमानदार व्यक्ति अपनी गाढी कमाई से और वह उस पर किसी भी तरह का काम्प्रोमिस नहीं कर सकता हो, यदि आप बहुत लक् वाले हुए तो आपको भी सिट मिल सकता है और फिर आप भी वही करेंगे जिसका अभी तक आप अवलोकन मात्र कर रहे थे और यदि अपने ऐसा नहीं किया तो फिर आपका पत्ता साफ और बगल वाला समझदार व्यक्ति आपको आपकी सिट से हट्टाने मैं कोई कसर नहीं छोड़ेगा . आप इस जिदो जहद के ४० मिनट में व्यस्क जीबन के हर उतार-चदाब का अनुभव कर सकते हैं बस आपकी आँखे और दिमाग खुला होना चाहिए. ऐसा नहीं हैं की आप की केवल आप विषम परिस्थितयों का हीं सामना करेंगे, आप को वयस्क जीबन का हर रूप का दर्शन करने का पूरा मौका मिलेगा बस आप केवल बताये गए नियम अर्थात आँख और दिमाग खुला रखे और उसका आनंद लें. इसके बाद आता हैं आपका अपना कर्म क्षेत्र - जहाँ आपको ८ से ९ घंटे देना परता हैं और जब आप पुनः उसी ट्रेन पर आते है तो आपकी अवस्था डूबते हुएं सूरज के समान होता हैं और आप विर्द्धावस्था मैं परबेस कर चुके होते हैं. अब न तो आप के पास व्यस्क अवस्था बाली जदों - जहद के करने कि शक्ति होतीं हैं न आप उस तरफ जाते हैं बरन एक वृद्ध के भातीं लटके से किसी कोने में जाकर सिकुर जातें हैं और एक्स्पेक्ट करते हैं सायद कोई व्यस्क आपकी कुछ सहायता कर दें और ठीक किसी तरह ४० मिनट गुजार भर लेतें हैं. और उसके बाद आरंभ होता हैं अंतिम चरण जहाँ आप सभी की हिदायत और डिमांड को पूरा करने के बाद आते हैं और अपने को एक जिमेम्बार सफल और बुजुर्ग व्यक्ति साबित करते हैं और सच मानिये आप केवल इसी अवस्था में किसी को अपने होने का अहसास दिला पाते हैं क्योंकि आप इस अवस्था में देने की स्थिति में होते हैं

7 comments:

  1. संजय जी
    पता नहीं क्यूँ आपके नाम के साथ जी शब्द स्वयं ही जुड़ जाता है...बिना अतिरिक्त प्रयास के...कुछ लोग ऐसे ही होते हैं जिनके स्मरण मात्र से श्रधा भावः उमड़ता है...आप की ये पोस्ट जीवन का सार है एक दिन के जीवन की व्यथा कथा में आपने पूरे जीवन का खाका खींच दिया है..आप में अच्छे ही नहीं, बहुत अच्छे लेखक बनने के सारे गुण मौजूद हैं... आप की पोस्ट का अंतिम वाक्य झकझोर गया...वाह संजय जी वाह...लिखते रहें.
    नीरज

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  2. बढ़िया-हर पल सिखाता है. बस आपकी आँखे और दिमाग खुला होना चाहिए. सही कहा!!

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  3. बढ़िया.

    ज़िन्दगी की जद्दोजहद हमेशा कुछ न कुछ सिखाती है. याद है मुझे ट्रेन में 'सफ़र' करने के दिन. पढ़कर सबकुछ आँखों के सामने आ गया. लेख में मात्रा की कुछ अशुद्धियाँ हैं. लेकिन चिंता करने की बात नहीं. टाइप करने में असुविधा धीरे-धीरे जाती रहेगी.

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  4. सुन्दर यात्रा कथा।

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  5. waah sanjay waah.
    bahut khub. aapki leknhi ne sundar tarike se jiwan ke sach ki tasweer khinchi hai.
    vadde paappji (niraji bhai) ki baat se purn sahmati hai ki aap me ek safal aur bade lekhak banne ke sab gun maujud hain.
    blog jagat me bahut bahut swagat aapka.
    jaari rakhen.

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  6. Yes there we live and see a totally different world in local trains. So you Colkatay thake ? I have seen human streems flowing at Hawrah station. Apni khoob bhalo likhe chi

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