मेरा मानना है, किसी भी व्यक्ति को खुश रहने के लिए किसी कारण या किसी वजह का होना जरूरी नहीं हैं. यह व्यक्ति बिशेष की अपनी मानसिक सोच पर निर्भर करता है. किसी भी कारण या बात को वह किस अंदाज में लेता है? उसकी सोच को दूरी क्या है? उस बात का कितना जल्द और कैसा प्रभाव उस पर होने वाला है ? .......? ......?. आदि...आदि.....
चलिए मैं कुछ आँखों देखा प्रसंग जिसका अनुभव मैंने मेरे बड़े भईया और मित्र के साथ सन-सेट पॉइंट, मुंबई में किया था और आज उसी दृश्य को आप सभी के साथ शेयर करता हूँ, और उससे जुड़े कुछ किन्तु और परन्तु भी शेयर करता हूँ...... और यह बताना चाहता हूँ, की जब आप आनंद से किसी चीज का अवलोकन कर रहे होते है तो उसका क्या निष्कर्ष होता है और जब आप उसी चीज का अवलोकन किन्तु-परन्तु से करते हैं तो उसका निष्कर्ष क्या हो सकता है?
पहला दृश्य : एक करीब ५० वर्षीय खाते पीते घर का व्यक्ति सूर्य से विमुख होकर कुर्सियों के सहारे , आधे लेटने की स्थिति में बैठा हुआ है और साथ ही साथ बिना रुके लगातार मकई के पकोडो और वहाँ पर बिक्री होने वाले व्यंजनों का अपने प्रियजनों के साथ स्वादन कर रहा है. उसे सूर्य की स्थिति से कोई लेना देना नहीं है. सूर्य आये या जाए उसे कोई फर्क नहीं पड़ रहा है. उसे तो केवल इस बात का ध्यान है कि उसके पकोडे आने में तो कोई विलंब तो नही हो रहा है या फिर समझ लीजिये कि पूर्ण मौज की स्थिति में है.
साधारण व्यक्ति का दृष्टिकोण : यह तो बड़ी ही हास्यपद स्थिति है भाई.... जब आप सन सेट पॉइंट पर आये हो तो, सूर्य को देखो, उससे प्राकृतिक सुन्दरता का आनंद लो, सूर्य द्वारा आच्छादित किरणों को तालाबो, पेडो और पहाडो पर देखो तब आपका सन सेट पॉइंट जाना सार्थक है, नहीं तो आप पकोडे तो घर पे ही खा सकते हो यहाँ आने का कष्ट करने की क्या आवश्यकता है?
असाधारण व्यक्ति का दृष्टिकोण : भाई, यह तो धर्म और मान्यताओं का अपमान है, और ये कृत्य पूर्ण रूप से दंडनीय है. आप में सूर्य देव के लिए श्रध्दा होनी चाहिए, चाहे आप किसी भी धर्म वाले क्यों न हो? आपके अन्दर धर्म की भावना होनी चाहिए.,एक तो आप सूर्य देव से विमुख हो , दुसरे जुठे मुँह लेकर आप सूर्य देव की अवहेलना कर रहे हो. यह पूर्ण रूप से दण्डनीय है और ऐसे व्यक्तियों के इन स्थलों पे आने पर रोक लगा देनी चाहिए आदि आदि ... ...
हम तीन मित्रो का नजरिया : भाई...! सब मौज है और जब आप खुश और टेंशन मुक्त है तो हम भी है.......
दूसरा दृश्य : एक धार्मिक गुरु जैसा व्यक्ति, माथे पर चन्दन , पैरो में मोजे और चप्पल एवं शाहरुख़ खान वाली चोटी के सहारे अपने व्यक्तित्व को अलग ढंग से हे आकर्षित करते हुए किसी परिवार के चार पांच सदस्यों को लगातार प्रवचन दे रहे थे. परिवार के सभी सदस्य बड़ी हे श्रद्धा के साथ उनका प्रवचन सुन रहे थे. ऐसा नहीं था के यहाँ पकोड़े नहीं आ रहे थे , परन्तु उनका सेवन बहुत ही सादगी पूर्ण रूप से हो रहा था.
साधारण व्यक्ति का दृष्टिकोण : भाई प्रवचन देने का यह उपयुक्त स्थल नहीं है, यदि आपको प्रवचन देना है तो मंदिर या मठो में जाकर दीजिये, यहाँ आने कि क्या ज़रुरत है? और इस वेश भूषा में तो ये मुझे पूर्ण रूप से ढोंगी लगता है और ये दृश्य पूर्ण रूप से एक ढोंगी का मायाजाल है एवं यहाँ सावधानी के आवश्यकता है.
असाधारण व्यक्ति का दृष्टिकोण : भाई आज ढोंग अपने चरमोत्कर्ष पर है, लोग - बाग़ अलग अलग वेशभूषा के सहारे लोगो को लूटते है. दर्शनीय स्थल पर इस ढंग का आचरण पूर्ण रूप से वर्जित कर देना चाहिए और समाज को भी इस तरह के ढोंग से आगाह करने की पूर्ण व्यवस्था सरकार को करनी चाहिए, और रही बात धर्म के अपमान की, तो वह तो हो ही रहा है. क्या करे.....? अपना धार्मिक और सामाजिक संतुलन ही इस ढंग का है......
हम तीन मित्रो का नजरिया : भाई...! सब मौज है और जब आप खुश और टेंशन मुक्त है तो हम भी है.......
तीसरा दृश्य: कुछ कॉलेज गामी छात्र एवं छात्राएं पुरे मौज कि स्थिति में हैं और हँसी मजाक करते हुए सूर्य के सामने अलग अलग मुद्राओं में फोटो खींच और खिंचवा रहे है. वे कभी डूबते हुए सूर्य को हथेली पर, कभी सर के ऊपर और कभी न भूलने वाले अंदाज़ में कैद कर लेना चाह रहे है. मौज मस्ती का पूरा आलम है, पकोडे, चाट, डाब आदि का लगातार सेवन चल रहा है.-- कम शब्दों में कहिये तो पूर्ण मौज के स्थिति है.
साधारण व्यक्ति का दृष्टिकोण : भाई, ये उम्र ही ऐसी है और इस ढंग की बात के होने में कोई अचरज नहीं है. हमने भी हमारे समय में कुछ ऐसा ही किया है.
असाधारण व्यक्ति का दृष्टिकोण : भाई इनके लालन पालन में सबसे बड़ा दोष इनके माता पिता का है, बस पैसे दे देते है और चाहे बच्चे कुछ भी क्यों न करे..? इनसे उनका कोई लेना देना नहीं है. वे तो बस अपनी पार्टियों में मशगूल रहते हैं और सामाजिक प्रतिष्ठा में इनका होना भी जरूरी समझते है. जब कोई बात या अनहोनी हो जाय तो व्यवस्था को दोष देते है. ऐसा नहीं है कि इसमें सामाजिक व्यवस्था का दोष नहीं है, वह भी बिगड़ चुकी है. हमारे समय में ऐसा नहीं था......आदि आदि. पुलिस और व्यवस्थापक भी इस बात के लिए दोषी है, सरकार को भी ठोस कदम उठाना चाहिए. भाई दर्शनीय स्थल पर ओछापन का होने का क्या औचित्य है .......आदि आदि.
हम तीन मित्रो का नजरिया : भाई...! सब मौज और आनंद है और जब आप खुश और टेंशन मुक्त है तो हम भी है....... बहुते खुश है...........
Thursday, July 16, 2009
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संजय जी आपने बिल्कुल ठीक कहा कि किसी भी व्यक्ति के खुश होने के लिए किसी कारण से ज्यादा मानसिक स्थिति प्रभावी है।
ReplyDeleteखुशियों की भरमार जगत में दृष्टिकोण का फर्क चाहिए।
खुशियाँ आ पाये जीवन में सार्थकता का तर्क चाहिए।।
लेकिन कभी कभी भौतिक स्थिति के कारण भी खुशी और गम आते हैं। जैसे बारिश आने पर माली खुश होता है और कुम्भकार दुखी। अच्छी चर्चा।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
संजय भाई आपने ये कमाल की पोस्ट लिखी है...आपके लेखन में आप के उस मित्र के लेखन की झलक है जिसके साथ आप सन सेट देखने कलकत्ते से मुंबई आये थे...संगत का असर स्पष्ट नज़र आ रहा है...लेकिन जो मित्र आपको सन सेट दिखाने लाया था, याने इस त्रिभुज का तीसरा कोण, उस मित्र ने अपने लेखन की छाप अभी तक आप पर नहीं छोड़ी है...अगर छोड़ी है तो प्रमाण जरूर दीजियेगा...
ReplyDeleteतीन अलग अलग वर्ग और सोच के लोगों का एक ही जगह और परिस्तिथि में किया गया बर्ताव बहुत मनोरंजक और ज्ञान वर्धक है...ज्ञान वर्धक लेखन अक्सर मनोरंजक नहीं होता है लेकिन आपकी ये पोस्ट अपवाद है...बधाई...
नीरज
भाई, बहुत अच्छा लिखा है. एक ही घटना पर साधारण और असाधारण व्यक्ति की बातें तो हैं लेकिन आपलोगों की बात अलग है.
ReplyDeleteमौज की बात सचमुच बढ़िया है. बहुते खुश करने वाली पोस्ट है.
shukria.debit credit bahut rochak naam hai. aapki soch,aapki khushi...very true!
ReplyDeleteसब पढ़ कर लगा कि
ReplyDeleteसब मौज और आनंद है और जब आप खुश और टेंशन मुक्त है तो हम भी है....... बहुते खुश है...........
बधाई एक अच्छी प्रस्तुति पर.